Electoral Bond Kya Hota hai: चुनावी बॉन्ड भारत सरकार द्वारा 2017 में पेश किया गया एक वित्तीय साधन है। यह बैंक द्वारा जारी एक वादक (bearer) मुद्रा है जिसे किसी भी राजनीतिक दल को दान के रूप में दिया जा सकता है। चुनावी बॉन्ड का उद्देश्य चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन के इस्तेमाल को कम करना था।
Electoral Bond Kya Hota hai: भारत में चुनाव के वक्त बहुत सारा पैसा खर्च होता है। और यह पैसा चंदे के जरिए इकट्ठा किया जाता है। राजनीतिक दलों को चंदा देने के जरिए को ही Electoral Bond कहा जाता है।
Electoral Bond Kya Hota hai?
इलेक्टोरल बॉन्ड्स का समय केवल 15 दिनों का होता है। जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को Electoral Bond के जरिये चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया है।
Electoral Bonds चुनावी बॉन्ड कैसे काम करता है?
भारत सरकार ने Electoral Bond योजना की घोषणा सन् 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी, 2018 को कानून लागू कर दिया था। सरल शब्दों में कहा जाए तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी SBI की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को दान कर सकता है।
- चुनावी बॉन्ड ₹1,000, ₹2,000, ₹5,000, ₹10,000, ₹25,000, ₹50,000, ₹1,00,000 और ₹2,00,000 के मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं।
- इन बॉन्डों को किसी भी निर्दिष्ट राजनीतिक दल को दान किया जा सकता है।
- दान करने वाला व्यक्ति या संस्था अपना नाम गुप्त रख सकता है।
- राजनीतिक दल इन बॉन्डों को केवल एक अधिकृत बैंक खाते में जमा कर सकते हैं।
- बैंक इन बॉन्डों को नकद में बदलने की अनुमति नहीं देता है।
Electoral Bonds चुनावी बॉन्ड के फायदे
- पारदर्शिता: चुनावी बॉन्ड का उद्देश्य चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना था।
- काले धन का इस्तेमाल कम करना: चुनावी बॉन्ड काले धन के इस्तेमाल को कम करने में मदद कर सकते हैं क्योंकि दान करने वाला व्यक्ति या संस्था अपना नाम गुप्त रख सकता है।
- चुनावी सुधार: चुनावी बॉन्ड चुनावी सुधारों को बढ़ावा दे सकते हैं।
Electoral Bonds चुनावी बॉन्ड के नुकसान
- अनाम दान: चुनावी बॉन्ड काले धन के इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकते हैं क्योंकि दान करने वाला व्यक्ति या संस्था अपना नाम गुप्त रख सकता है।
- राजनीतिक भ्रष्टाचार: चुनावी बॉन्ड राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकते हैं क्योंकि राजनीतिक दल बड़े दानदाताओं के प्रति अधिक जवाबदेह हो सकते हैं।
- चुनावी प्रक्रिया में असमानता: चुनावी बॉन्ड धनी व्यक्तियों और संस्थाओं को चुनावी प्रक्रिया में अनुचित लाभ दे सकते हैं।
Electoral Bonds चुनावी बॉन्ड पर लगाई गई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च, 2023 को चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी बॉन्ड चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने में विफल रहे हैं और काले धन के इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, चुनावी बॉन्ड योजना, अनुच्छेद 19 (1)( ए) का उल्लंघन है। इस कारण सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है। जनता को यह जानने का पूरा हक है कि किस सरकार को कितना पैसा मिला है। अदालत ने निर्देश जारी कर कहा,” स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण 31 मार्च,2024 तक चुनाव आयोग को दें।” साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 13 अप्रैल,2024 तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर जानकारी साझा करे ।
Electoral Bonds चुनावी बॉन्ड का भविष्य
चुनावी बॉन्ड का भविष्य अनिश्चित है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी है, लेकिन सरकार इन बॉन्डों को फिर से शुरू करने के लिए कानून में बदलाव कर सकती है।
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